(१)
मन
मन तो एक डोर है,
जिसमें ना कोई जोड़ है।
बंधे संसार से जिसके छोर हैं,
इस पर ना किसी का ज़ोर है।
अगर यह नियंत्रित हो जाए,
तो समझो जीवन की भोर है॥
(२)
ईर्ष्या
ईर्ष्या-जलन एक भाव है,
जो डुबोता मन की नाव है।
सुबह को दोपहर सा गर्म कर देता है,
दोपहर में रात सा अंधकार भर देता है,
दृष्टिहीनता का दोष लग जाता है,
स्पष्ट होने पर भी नज़र नहीं आता है।
(३)
प्रेम
संसार का आधार है,
सबसे ज़्यादा इसका भार है,
यही सर्वाधिक असरदार है,
इससे बहती ठंडी ब्यार है,
हर रोग का करता इलाज तैयार है,
इसका ख़ाली नहीं जाता कभी वार है।