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कैलाश-मानसरोवर यात्रा

अप्रैल 16, 2011


दिल्ली से प्रस्थान
07/06/2010 (चौथा दिन)

दिल्ली से अल्मोड़ा तक

छः तारीख़ की रात मुझे क्षण मात्र भी नींद न आयी। मन उत्साह से भरा हुआ था पर एक डर सा भी था क्योंकि यात्रा बहुत कठिन थी। तीन बजे उठकर नहा ली और पूजा अर्चना करके चाय इत्यादि पीकर पौने चार बजे टिंक्कू को जगा कर चलने के लिए कहा। लड़का दस मिनट में ही तैयार होकर आगया। मैं भगवान का नाम लेकर प्रस्थान कर गयी…
गुजराती-समाज मेरे घर से बहुत दूर नहीं है, साथ ही रात में सड़कें सुनसान थीं सो हम (अग्रजा भी साथ ही थीं) लगभग चार पच्चीस पर वहाँ पहुँच गए। पर यह क्या वहाँ बिल्कुल शांति थी गेट बंद था कोई भी दिखाई नहीं देता था। हमने लोहे के फाटक को ज़ोर से खटखटाया तो एक चौकीदार आँखें मलता हुआ आया और हमारे बताने पर दरवाजा खोल दिया। मैं तेजी से लिफ़्ट से तीसरी मंजिल पर उस कक्ष में गयी जहाँ तीर्थ-यात्री ठहरे हुए थे। वहाँ बहुत हलचल थी। कोई नहाकर तैयार हो रहा था तो कोई नहाने जा रहा था। हर कोई बहुत व्यस्त था। हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम किससे बोलें! तभी हमें कुमाऊँ-मंडल के प्रबंधन सहयोगी श्री दीवान जी मिल गए। उन्होंने हंसते हुए अभिवादन करते हुए कहा-’पहुँच गयीं! आपका लगेज कहाँ है?’ हमने कहा- ’बाहर गाड़ी में ही रखा है” उन्होंने मुझे प्लास्टिक के रेशों से बनी दो बड़ी सफेद बोरियाँ और रस्सी दीं, और अपने लगेज को इनमें बाँधकर काले मार्कर से अपना नाम और बैच नंबर लिखने को कहा। सभी यात्री रात को ही यह सब करके सोए थे। मैं जल्दी नीचे उतर आयी और टींकू की मदद से वैसा ही किया। उसी समय एलओ साहब भी पहुँच गए थे।
हमारे सहयात्री कर्नाटक के श्रीबालाजी जो लगेज प्रबंधन के इंचार्ज थे ने सभी का सामान गिनवाकर वहीं खड़े टैंपू में लदवा दिया।
इधर एलओ साहब ने आकर सभी को जल्दी बाहर आने का आह्वान किया, उधर श्री उदय कौशिक जी और सुश्री दीपा जी ने एक छोटे से कमरे में भगवान गौरीशंकर की मूर्ति स्थापित कर रखी थी जहाँ शिव-स्तुति अनवरत चल रही थी। सभी यात्री एक-एक करके वहाँ जाकर दंडवत कर रहे थे। सभी को तिलक लगाकर फूलों की माला और पीला पटका भेंट करके प्रसाद दिया जा रहा था। इस तरह सभी यात्री बाहर मुख्यद्वार पर पहुँच गए। कुछ प्रायवेट संस्थाओं के लोग भी विदा करने आए हुए थे। सभी यात्रियों को ’ओम नमःशिवाय’ लिखे पटके और रुद्राक्ष की माला भेंट में मिलीं।

चाय और भुने हुए बादाम के पैकेट, नमकीन के पैकेट और पानी की बोतल इत्यादि भी दिए। तीर्थयात्री और विदा करने वाले दोनों ही उत्साहित थे। भगवान शंकर की जयजयकार हो रही थी। सुंदर और भावपूर्ण दृश्य था।
बराबर में ही वोल्वो बस खड़ी थी। तभी हमें बस में बैठने को कहा गया। मैं जाने को हुई तो मेरी अग्रजा मुझसे गले लगकर रोने लगीं मैंने उन्हें हंसकर गले लगाया:-) अन्य यात्री भी उन्हें आश्वासन देने लगे। मैं उनसे आज्ञा लेकर बस में जा बैठी, वो खड़ी होकर मेरी ओर हाथ हिला रहीं थीं। लगभग साढ़े छः बजे बस ने हॉर्न दिया और चल पड़ी।

सभी ने उच्च स्वर में भगवान शिव का जयजयकार किया और बैठ गए। एलओ साहब अलग टैक्सी में थे।
बस दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती जा रही थी। मन में कैलाश दर्शन का भाव लिए यात्री ताली बजाकर कीर्तन कर रहे थे। हमें बताया गया कि ग़ाज़ियाबाद में नाश्ते का प्रबंध है।
साढ़े सात बजे बस गाज़ियाबाद के जीटी रोड पर बने बड़े हॉल के आगे रुकी। सभी नीचे उतरे। सामने गाज़ियाबाद मानसरोवर सेवा समिति के अध्यक्ष और अन्य सदस्य हमारे स्वागत में फूलों की मालाएं लेकर खड़े थे सभी को मालाएं पहनायी गयीं और भगवान शिव केध्यानस्थ रुप के चित्र वाला पेंडेंट लगी रुद्राक्षकी मालाएँ भेंट दी गयीं। अभी अंदर जा ही रहे थे कि एलओ साहब ने सभी को शीघ्रता करने का आदेश दिया। अंदर अनेक वृद्ध महिलाएँ भी थीं जो सभी का स्वागत कर रहीं थीं। मंच सजाया हुआ था। सभी के लिए सोफ़े बिछे थे। विधिवत स्वागत-गान गाया गया। एलओ साहब मुख्य आतिथि थे उनका विशेष स्वागत हुआ। पर वे इन सब कार्यक्रमों को जल्दी निपटाना चाहते थे सो उन्होंने अपने अतिथि-भाषण को अति संक्षिप्त करते हुए लंबा सफ़र होने के कारण सभी तीर्थयात्रियों को अतिशीघ्र जलपान समाप्त करके बस में बैठने को कहा। सभी ने उनकी बात मानते हुए आधे घंटे में ही जलपान निपटा दिया और गाज़ियाबाद के आतिथ्य-सत्कार के लिए धन्यवाद और आभार प्रकट करते हुए बस में जा बैठे। बस पुनः दौड़ने लगी। सभी यात्री पुनः कीर्तन करने लगे। कुछ ने भजन सुनाए तो कुछ ने चुटकुले सुनाकर यात्रा का आनंद बढ़ाया।
लगभग डेढ़ बजे बस काठगोदाम कुमाऊँ-मंडल के अतिथि-गृह के द्वार के पास रुकी।
स्त्रियाँ पारंपरिक परिधानों में सुसज्जित होकर हाथ में थाल सजाए स्वागत के लिए खड़ी थीं। सभी तीर्थ-यात्रियों के तिलक लगाया गया और माला पहनायी गयीं। वहाँ स्थानीय अखबारों के और किन्हीं टीवी चैनलों के पत्रकार भी खड़े थे जिन्होंने सभी तीर्थयात्रियों के सामूहिक फोटो लिए और कुछ से बातचीत भी रिकॉर्ड की।
वहीं भोजन कक्ष में दोपहर का भोजन किया। सब पुनः चलने को तैयार थे। तभी पता चला कि अब वोल्वो में नहीं जा पाएँगे क्योंकि आगे रास्ता पहाड़ी चढ़ाई वाला है जहाँ छोटी बसें ही चलती हैं सो दो मिनि बसें आगे ले जाएंगी। यात्रियों को बैठाकर बसें चल पड़ी। बस की सीट बहुत छोटी थीं। टांगें फंस रहीं थी। पर बैठना तो था ही। सो बैठे रहे बस दौड़ती रही।

सभी को चाय की जरुरत महसूस हो रही थी। तभी हमारी बस रुकी। कुमाऊं-मंडल के गाईड जो हमारे साथ था ने बताया कि यह कैंची-धाम है। सभी दर्शन के लिए गए। बाहर गेट पर लिखा था ’परम पूज्य बाबा नीम करीरीजी महाराज’ । अंदर बाबा की जीवंत प्रतिमा थी तो मंदिर और आश्रम था। बाहर भीतर सभी जगह पेड़-पौधों का सौंदर्य!
बाहर आकर सभी ने चाय पी और कुछ फल अलूचे इत्यादि खरीदे। पुनः बस चल पड़ी और संध्या होने तक चलती रही। बाहर रिमझिम फुहारें पड़ रहीं थीं अंदर से यात्री पहाड़ी दृश्यों का आनंद ले रहे थे। चढ़ाई पर बस की गति धीमी थी। सातबजे के आसपास हम अल्मोड़ा पहुँच गए। कुमाऊं-मंडल के गेस्ट-हाऊस में ठहरने की व्यवस्था थी। गेस्टहाऊस थोड़ी ऊँछाई पर बना है। थके हुए यात्री भीगते हुए अंदर पहुँचे। एलओ ने सभी को कमरे नं दिए। हमारा ग्रुप अपने कमरे में पहुँच गया। बहुत बड़ा कमरा और आरामदायक था। कमरे से जुड़ा हुआ बड़ा सा बाथरूम था। छः बिस्तर लगे थे।
हम छः सदस्य थे सभी ने अपना बिस्तर निश्चित कर लिया और गर्म पानी से हाथ मुंह धोकर वस्त्र बदलकर गर्म सूप पिया। अंधेरा हो चुका था और बारिश बंद हो चुकी थी। सब की टांगे जाम हो गयी थीं मिनि बस में बैठे-बैठे तो सोचा कि अल्मोड़ा की सड़कों पर टहला जाए। हम गुजराती यात्री नलिनाबेन, गीता और स्मिताबेन के साथ बाहर आगए। थोड़ा आगे बढ़े तो पता चला कि शहर में लाइट नहीं आ रही है। बाजार बंद हो चुका है। फिर भी टांगों को सुकुन देने के लिए चलते रहे। धीरे-धीरे अन्य यात्री भी आगए। तभी बहुत ज़ोर से बादल गरजकर बरसने लगे। बंद दुकानों के शेड के नीचे रुकना पड़ा। कुछ
यात्री भीगते हुए ही वापिस हो गए। हम बारिश बहुत हल्की होने पर आए। अंदर भोजन-कक्ष में भोजन तैयार था। सभी एकत्र हो गए। सभी ने शिव-वंदना की। एलओ ने मीटिंग की और सुबह छः बजे प्रस्थान का कार्यक्रम रखा। समय की पाबंदी उनका नारा था। सभी ने भोजन किया और कमरे में जाकर सो गए।
मेरा पलंग किनारे पर था, बीच में नलिनाबेन और दूसरे किनारे पर वीना मैसूर थीं तो सामने वाली पंक्ति में एक ओर स्नेहलता, बीच में श्रीमति और किनारे पर उसके पति सोए हुए थे।
सभी थके हुए थे सो पड़ते ही गहरी नींद सो गए। ढ़ाई बजे मेरी आंख खुली तो देखा सामने श्रीमति अपने बिस्तर पर बैठी हुयी थी। मैंने उसका हाल पूछा तो उसने बताया कि उसे सिर दर्द हो रहा था। वह सो नहीं पायी हमारे सभी के खर्राटों की प्रतियोगिता चरम पर होने के कारण  🙂
अगली पोस्ट में   अल्मोड़ा से पिथौरागढ़


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