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कुगु से कीहू

मई 25, 2011

24/6/2010 यात्रा का इक्कीसवाँ दिन
कुगु से कीहू
दूरी दस किमी.
शिवधाम कैलाश से विदा
सुबह साढ़े पांच बजे आँख खुल गयी, उठकर बाहर आकर देखा तो आकाश बादलों से ढका हुआ था, हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। रात को बारिश हुई थी अहाता गीला था। अन्य यात्री भी अपने-अपने कमरे के दरवाज़े से बाहर झांक रहे थे।
टॉयलेट बहुत दूर था सो मैं छतरी लेकर दैनिक-चर्या से निपटकर गर्म पानी हेतु किचेन में गयी। कुक चाय बना रहे थे। मैं गर्मपानी से हाथ-मुंह धोकर वापिस कमरे में आगयी। कुक सभी कमरों में चाय दे गया।
आठ बजे के आसपास बारिश बंद होगयी पर हवा और बादल ठंड बनाए रखने में सहयोगी हो रहे थे फिर भी सभी यात्री बाहर निकल आए थे। एलओ और कुछ यात्री दिखाई नहीं दे रहे थे।
पता चला कि एलओ ने रात मींटिंग में ही बता दिया था कि अगले दिन दस बजे बस से किहू के लिए रवाना होना था पर एलओ और कुछ अन्य यात्री अमर, चैतन्य, मधुप और महेश इत्यादि पैदल अलसुबह ही निकल गए थे।
हमने अपना लगेज पैक किया और एक दिन के सामान बाहर रकसक में रख लिया और सामान के बैग बस के पास रख आए। बालाजी इत्यादि लगेज कमेटी गुरु के साथ सामान बस की छत पर रखवा रही थी।
हम मानस में स्नान करना चाहते थे पर अन्य यात्रियों ने मौसम की दुहाई देकर आग्रहपूर्वक मना किया सो मान गए। वस्त्र बदल कर स्नेहलता के साथ यज्ञ वाले चबूतरे की ओर से मानसतट पर जाकर नमस्कार करके अर्घ्य दिया और कैलाश को नमन करके भोलेबाबा से प्रार्थना की।
कुछ यात्री थोड़ा आगे जाकर बॉटल में मानस-जल भरकर ले जारहे थे हमने भी सुरेश से एक और बॉटल भरवा ली। वहीं ज्योत्सना और रश्मि शर्मा भी घूम रहीं थीं। हम सभी मानस के दिव्य सौंदर्य की चर्चा कर ही रहे थे कि बालाजी अपना हैंडीकैंम लेकर आ गए और हम सब का अलग-अलग यात्रा संबंधी अनुभव रिकार्ड किया। बालाजी ने एलओ सहित पूरे दल के सदस्यों के यात्रा के अनुभव रिकॉर्ड कर विडियो-रील बनायी थी।
हम रिकॉर्डिंग कराकर बालाजी को बताकर मोनेस्ट्री में चले गए। मोनेस्ट्री में स्वच्छता और सजावट तो दर्शनीय थी ही। पता चलता था कि काफ़ी धन लगाकर मोनेस्ट्री का प्रबंधन होता है। गुरु ने बताया था कि वहाँ मानस के तट पर बारहमास तीसों दिन लामा लोग रहते हैं। जब सर्दियों में तापमान माइनस से भी बहुत नीचे हो जाता है तब भी मोनेस्ट्री बंद नहीं होती। हम कुछ देर वहाँ बैठकर ध्यान लगाए और वापिस गेस्टहाऊस की ओर आगए।
वहाँ पहुँचकर पता चला नाश्ता में उपमा बना था। सभी ने अचार, पापड़ और चटनी के साथ मज़े से खाया। गुरु ने सभी को बस में बैठने को कहा तो सहयात्री चंद्रेश पटेल ने और अन्ययात्रियों के साथ यात्री-फ़ंड (हमसब का अपना) से उन तिब्बती-बुज़ुर्ग को सौ युआन भेंट किए जो सुबह कड़कती ठंड से लेकर रात सोने तक बिना चिड़चिड़ाए हमारे कमरों तक गर्मपानी पहुँचाते थे और सफ़ाई-स्वच्छता का पूरा ध्यान रखने के साथ-साथ हमेशा सहायता के लिए तैयार रहते थे। लगभग साढ़े ग्यारह बजे बस में बैठ गए।
बस के ड्राइवर ने जैसे ही बस स्टार्ट की तो यात्रियों ने विदाई-भाव के साथ शिव-धाम कैलाश और देव-सरोवर मानस को नमन किए और ’हर-हर महादेव’ के जयकारे लगाए। सभी कैलाश से विदा लेते में भावुक थे क्योंकि आगे धीरे-धीरे कैलाश के दर्शन छिप जाते हैं। यही बाबा भोले के धाम के अंतिम दर्शन थे।
हमारी बस मानस के किनारे-किनारे बने रास्ते पर जा रही थी। हम मानस के विशाल रुप को देखकर मुग्ध हो रहे थे। 88किमी परिधि वाली मानस! कहते हैं कही-कहीं इसकी गहरायी 90मीटर तक है! स्वच्छ और विशाल जलराशि जिसमें कहीं-कहींश्वेत बत्तख तैरती भी दिखायी दीं शाय्द उन्हें ठंद नहीं लगती है। आकाश के बादलों के कारण उस समय मानस बहुत हल्के नीले रंग में दृष्टिगोचर हो रही थी।
मानस के किनारे-किनारे पक्की सड़क का निर्माण हो रहा था। कई-जगह रास्ते में व्यवधान के कारण बीच-बीच में रुकती हुयी बस चलती-चलती एक जगह रुकी तो गुरु ने सभी यात्रियों को उतरने को कहा। हमने सोचा ज़्यादा देर का अड़ंगा होगा पर पता चला कि वहाँ एक ओर मानस तो दूसरी ओर पहाड़ों की कंदराओं में मोनेस्ट्री बनी हुयीं थीं जो हमारी यात्रा के दर्शनीय-स्थलों की लिस्ट में थीं, सो गुरु ने उन मोनेस्ट्रीज़ को देखने जाने के लिए कहा।
गुरु के साथ कुछ यात्री चले गए। बाकी हम सब कुछ देर तक तो मानस के तट पर खड़े होकर उसकी अथाह गहराई और विशाल फैलाव को देखते रहे उसके बाद वहीं किनारे पर फैले पत्थरों में ’ऊँ’लिखे और शालिग्राम जैसे जनेऊधारी पत्थर बीनने लगे। जब सब यात्री उतर आए तो गुरु ने गिनती करके बस-ड्राईवर से चलने के लिए कहा और बस दौड़ने लगी। लगभग तीन बजे हम किहू पहुँच गए।
एल ओ और अन्य यात्री पहले से पहुँचे हुए थे पर वे सब भी किसी स्थानीय बस से पहुँचे थे पैदल नहीं पहुँच सकते थे। एलओ ने कमरा नं० और सहयात्री बताए। हमारा पूरा ग्रुप एक ही कमरे में था।
हम सामान रखकर बाहर आए तो गुरु सभी को सड़कपार कुछ दूर ले गया और मानस से निकली नदी जो सूखी हुयी थी जिसमें पानी नहीं था वह दिखाने ले गया। सारे में पत्थर ही पत्थर फैले हुए थे। गुरु ने कहा कि यहाँ ऊँ लिखे पत्थर मिलते हैं, पर भाग्यशाली यात्रियों को ही दिखायी देते हैं। सभी पत्थर ढूंढने लगे। 🙂 दूर प्रकृति के दृशय अद्भुत थे।
हमने लोगों के पत्थर बीनते हुए फोटो खींचे और वापिस स्नेहलता के साथ कमरे में आगए। कमरा सड़क के किनारे(सभी एक पंक्ति में) बहुत साफ़-सुथरा और हवादार था। कमरे की छतपर भी तिब्बती कला का प्रदर्शन हो रहा था। पर टॉयलेट यहाँ भी वही कच्चे और बहुत ही गंदे थे। लोग कमरों के पीछे जाकर खुले में ही निपट रहे थे।
कुक ने चाय बनायी और कमरे में ही देदी। हम सब ने अपने साथ लाए खाने के सामान नमकीन, बिस्कुट, सकलपारे इत्यादि निकाले और चाय के साथ खाने लगे।
कुछ यात्री सामने बुद्ध के प्रथम शिष्य स्कंद की पहाड़ की चोटी पर बनी मोनेस्ट्री देखने चले गए तो कुछ मानस के किनारे नेपाल के संत प्रकाशगिरि की तपस्या-स्थली गुफ़ा देखने चले गए।
हम और स्नेहलता भी मानस के तट की ओर जारही सड़क पर चल दिए। यहाँ मानस पूर्व दिशा में है।उस समय बिल्कुल आमने-सामने मानस और सूर्य! सूर्य दैदिप्यमान हो रहा था। हम सड़क के अंतिम छोर पर पहुँच गए। उसके आगे रेतीला और दलदली क्षेत्र था। वहाँ कंटीले तारों की बाढ़ लगी थी। हम उससे आगे नहीं गए। वहाँ कोई भी नहीं था।
किहू में मानस के किनारे से ल्हासा और काठमांडू तक सड़क बनी हुयी है। यहाँ प्रायवेट टूर वाले भी तीर्थयात्रियों को रोकते हैं। उनके गेस्ट हाऊस साथ ही पर अलग बने थे। थोड़ी दूरी पर ही एक सरकारी डिस्पेंसरी बनी हुयी थी। हमने क्रॉस के चिह्न से पहचान तो लिया पर फिर भी कुक से पूंछकर कन्फ़र्म कर लिया क्योंकि वहाँ अँग्रेजी में कुछ नहीं लिखा था। आसपास थोड़ी दूर पर ग्रामवासियों की झोंपड़ियाँ भी बनी थीं जिनके आसपास स्थानीय बच्चे भी खेल रहे थे।
हम लौट रहे थे कि रास्ते में स्मिताबेन और गीता बेन टहलती मिलगयीं हम चारों एकसाथ टहलने लगे। शाम होने के साथ-साथ रेगिस्तान जैसी धूलभरी हवा बहुत तेज चल रही थी। हम वापिस अपने कमरे में आगए।
शाम को गुरु के सहयोग से एक रेस्टोरेंट के सोफ़ों पर बैठकर भजन-प्रार्थना की और एलओ की मीटिंग अटेंड की। सुबह छः बजे प्रस्थान समय बताया गया।
रात का खाना बालाजी और वीना मैसूर ने तैयार कराया। कर्नाटक में बनाए जाने वाले विशेष विधि से चावल पकवाए गए। हमने बहुत थोड़ा खाना खाया और कमरे में आकर सो गए।